कुण्डलियाँ
विचार सोचकर बोलिए , अति बोलन बकवास ।
मोल रहे नहि बोल की , बनि जाबे उपहास ।।
बनि जाबे उपहास , नहि श्रोता के हिय भाय ।
कम बोल अधिक सुने ,सुजान बनि सबै हर्षाय ।।
रस घोल देत बानि , जस नित बाढ़ै आपार ।
बीच पंच में बैठि , शबद चुनिए सोच विचार ।।
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नशा करके भैया के , तन में आये बेग ।
काया की सुधियाँ गयीं , गटके एक दो पेग ।।
गटके एक दो पेग ,जग की स्मृतियाँ बिसरी ।
जमी बने जीनत जन्नत ,सेज है गलिएँ सुसरी ।।
नागिन हौवे चाल , अद्भुत दीखे अंग दशा ।
सिंग हाथी को मात दें , तन चढ़ैके बोले नशा ।।
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शेख जाफर खान