कुण्डलियाँ
दो हजार सत्रह की सर्दी हुयी सियासत गर्म।
कल तक अकड़े थे खड़े आज हो गए नर्म।
आज हो गए नर्म गांव गलियों में घूमे।
गिरगिट से भगवान पांव देहरी के चूमे।
कह नीरज कविराय कभी दर्शन भी दे दो।रखना मित्रो ध्यान बटन पक्का दबवा दो।
बड़ी लग्जरी गाड़ियां कभी न लगते ब्रेक।
बिगुल चुनावी बज गया हो गए डंडा टेक।
हो गए डंडा टेक फिर रहे द्वारे द्वारे।
राजनीति के देखो भैया मस्त नजारे।
कह नीरज कविराय बनाओ ऐसी तिगड़ी।
वोट निकालो खूब लीड हो बहुत ही बड़ी।