कुण्डलियाँ
मानवीय सद्गुणों से, हुए कभी परतंत्र
सदियों के संघर्ष से, मिला हमें जनतंत्र
मिला हमें जनतंत्र, मिला न मन्त्र स्वदेशी
संविधान ने किया, देश में ही परदेशी
अंग्रेजी की पूँछ, और खिचता आरक्षण
लोकतान्त्रिक देश, और बद हुआ कुशासन||१||
लोकत्रांत्रिक देश में, फूल खिले बदरंग
जन जन नेता हो गए, अंकुश बिना दबंग
अंकुश बिना दबंग, मचाएं मारा मारी
आम नागरिक त्रस्त, लूटते भ्रष्टाचारी
सहनशीलता ओढ़, चीखते सर्प सपेरे
अच्छे दिन में सेंध, लगावें वे ही चेहरे||२ ||