कुण्डलियाँ
——कुण्डलियाँ—-
चौसर बिछी चुनाव की, लगी सियासी दाँव।
प्यादे चौकन्ने हुए, न कोई खींचे पाँव।।
न कोई खींचे पाँव, करें सब चौकीदारी।
जनमत की हो रही, यहाँ पर साझेदारी।
कह “प्रीतम” कविराय, हार मत जाना गौहर।
सोच समझ कर खेलना, सियासत की चौसर।।
प्रीतम राठौर श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)