कुडलिया-छंदक्र.४५ से आगे
कुंडलिया छंद
४६
शामा
शामा चिड़िया सुर मधुर,
जंगल जंगल गाय।
महिना चैत अषाढ़ मे,
तिनका तिनका लाय।।
तिनका तिनका लाय
,बनाय घोंसला सुंदर।
अपने बच्चे पाल ,
साथ मे रहती अंदर।।
अनेकांत कवि कहत,
भजन बस रामा रामा।
दया भाव चितधार,
बचायें शामा शामा।।
४७
भुजंगा दर्जिन
भुजंगा दर्जिन चिड़ियाँ,
पतली फुदकी जान।
भुजंगा लम्बी पूँछ
दर्जिन फुदकी नाम।।
दर्जिन फुदकी नाम,
झाड़ी बीच मे रहती।
मानव देख इन्हें,
सुंदर घोसला बुनतीं।।
अनेकांत कवि कहत,
तब ही ऊँचा तिरंगा।
जंगल झाड़ी बचे.
दर्जिन तब ही भुजंगा।।
४८
हाँथी
हाँथी अपने देश की,
कहलाती है शान।
श्रीगणेश मुख शोभते,
तब गजराज महान।।
तब गजराज महान,
पर रक्षा गज की कीजे ।
वन रहते गजराज,
महत्व वनो को दीजे।।
अनेकांत कवि-राय,
पुरातन हालत क्या थी।
अब गिनती के बचे
अपने देश मे हाथी।।
४९
ऊद विलाव
जल जीवों को जानिये,
उनमें ऊद विलाव।
भारत मे अब कम दिखें,
पर्यावरण प्रभाव।
पर्यावरण प्रभाव,
समझिये संकट भारी।
संकट कारण जान,
प्रदूषित नदी हमारी।।
‘अनेकांत’कवि कहत,
जल नीति बनाए सवल
जल जन्तु ऊद विलाव
बचेगा जब नदियन जल।।
५०
श्वेत उलूक
पंछी श्वेत उलूक का,
निर्जन भवन निवास।
आस पास मे ही करे,
भोजन हेतु प्रवास।।
भोजन हेतु प्रवास,
मगर सीमा मे रहते।
पर हम तो इंसान,
न क्यो फिर सीमा रखते।।
‘अनेकांत कवि कहत
सियासत होवे अच्छी।
सुधरे पर्यावरण,
बचेंगे तब ही पंछी।।
राजेन्द्र’अनेकांत’
बालाघाट दि ११-०२-१७