*** कुछ हसरतें ***
कुछ हसरतें कुछ ख्वाहिसें
दिल में बाकि है
पूरा करें तो कैसे
ना शराब है ना साकी है ।।
?मधुप बैरागी
हम रोज नयी कविता गढ़ते हैं
क्या दिल को कभी पढ़ते हैं
गढ़ सकते अगर दिल को तो
रोज दिल तोड़ पुनः गढ़ते हम ।।
?मधुप बैरागी
दिल के जज़्बात अब किससे कहूं
ग़म-ए-हालात अब किससे कहूं
कोई तो समझे अब मुझको यारोँ
अब बिन मौसम बरसात किस्से कहूं।।
?मधुप बैरागी