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29 May 2024 · 1 min read

कुछ हम निभाते रहे, कुछ वो निभाते रहे

आशिक़ी में ज़्यादा उम्मीद भी क्या करते,
हम वफ़ा करते रहे, और वो ज़फ़ा करते रहे।
****
ज़माने की नज़र में रिश्ता कामयाब रहा,
कुछ हम निभाते रहे, कुछ वो निभाते रहे।
****
जी भरकर नींद भी तो, न ले पाए हम-तुम,
कभी तुम जगाते रहे, कभी हम जगाते रहे।
****
जाने कैसे काटते हो तुम रात-दिन हिज़्र में,
ख़ैर हम तो तुम्हारी ही ग़ज़लें गुनगुनाते रहे।
****
ठीक थी मोहब्बतें खुले आसमां के नीचे फ़क्त,
सावन में गिरे जामुन, हम साथ-साथ जुटाते रहे।
****
हम आईनों से उनकी एक तस्वीर माँगते रहे,
और वो रोज़ अपना अक़्स बदलते छुपाते रहे।

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