कुछ सवाल
कुछ सवाल आज भी सताते है
यूँ ही नही हम ये राज़ बताते है।
सुरमई शाम जब भी आसमान की
आंखों में उभर कर आती है
कुछ धुंधलका सा न जाने क्यों
मेरी यादों में समा जाता है
बैचैन कर देता है दूर क्षितिज में
धरती आसमान का मिलन
न जाने कितनी आंखों में
एक आस जगा जाता है।
मनु श्वेता “मनु”