कुछ समझ लिया कीजै
अब किसी से भी क्या गिला कीजै
खुद ही कुछ -कुछ समझ लिया कीजै
है उठी एक लहर दुनिया में
जल रही आग है हवा कीजै
बेखबर दिल हुआ है अब मेरा
गम नहीं और अब अता कीजै
हम खटकते हैं सबकी नज़रों में
आप हमसे न यूँ मिला कीजै
ज़ख़्म नासूर बन न जाये कहीं
मर्ज गहरा है अब दवा कीजे
इतनी बेताबियाँ भी ठीक नहीं
कुछ ज़माने से भी डरा कीजै
पसरी मनहूसियत है कब से ही
जर्द पत्तों पे मत चला कीजै
आपसे क्या कहे सुधा अब तो
लाज वादे की भी रखा कीजै
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ,©®