*** कुछ शेर ***
हक़ीक़त में सम्भव नहीं उनको रुलाना
क्यों न तसव्वुर में ही रुलाया जाय
दिल अपना जो हमारी दुआओं में लगाये
क्यों न दिल अब उनसे यूं लगाया जय
घाव गहरा जो दिल पर करता है
जुबा-तीर-ए- तरकश तोड़ा जाय
कब निकलेंगे जिंदगी के अंधेरो से हम
अब लुत्फ़ अंधेरों का भी उठाया जाय
वैसे लिखना मेरी आदत में नहीं हैं फिर भी
ऐसे शिरकत-ए-महफ़िल को क्यों छोड़ा जाय
?मधुप बैरागी