कुछ यूं मेरा इस दुनिया में,
कुछ यूं मेरा इस दुनिया में,
कालिदास सा रसूख रहा।
कि जलता रहा मेरा घर,भयंकर लपटों में,
और मैं धुंए से महल बनाने में मसरूफ रहा।
कुछ यूं मेरा इस दुनिया में,
कालिदास सा रसूख रहा।
कि जलता रहा मेरा घर,भयंकर लपटों में,
और मैं धुंए से महल बनाने में मसरूफ रहा।