*** कुछ मुक्तक ***
जिंदगी चाहे तो अब मुझको ना आराम दे
जिंदगी जीने के वास्ते थोड़ा तो विश्राम दे
मत बन तूं क्रूर इतनी कंस के कारगाह सी
अब उठने से पहले थोड़ा तो चैन से सोने दे।।
जिंदगी मै बोझ तेरा जिंदगीभर ढोता रहा
आज थका कंधों को अपने जो सहला रहा
काश किस्मत होती हमारे कोई आरामगाह
आज महल-ए-जिंदगी में आराम फरमा रहा।।
मुफलिसी में मौत भी मिलती नहीं
कायनात-ए-मुहब्बत मिलती नहीं
शुकुं से जी लूं चारदिन जहां में
मुहब्बत है, तिजारत में बिकती नहीं ।।
अब मौत से फासला कम होता जा रहा है
ना जाने कौन सा ग़म कम होता जा रहा है
आ रही है मौत जबसे दिन-दिन नजदीक मेरे
ऐ ख़ुदा दरमियां फासला खत्म होता जा रहा है।।
दिल चाहता है आज फिर मेरा
अपनी जां को जां अपनी दे दूं
या फिर अपनी जां से अपनी जां
वापस ले लूं और बेजान कर दूं ।।
मैं अगर मौत का सौदागर बन जाऊं
तो पहले मौत खरीद अपने लिए लाऊं
ना आऊं दुनियां में लौटकर-लौटकर फिर
फिर औरों को चैन की गहरी नींद सुलाऊं।।
जिंदगी को अब मैं हारना चाहता हूं
सच कहो उन पर वारना चाहता हूं
हो ना परवाह चाहे उनको मेरी अब
जिंदगी को अपनी तारना चाहता हूं।।
?मधुप बैरागी