कुछ भोजपुरी दोहे
पर्दा में शोभत हई, घर के बुढ़िया सास।
मेक्सी में घूमत रहें, बहुवर से का आस।।
चिलमन से झाँकत हई, गोरी जवनी ओर।
रजनी में दिनकर खिलल, भक से भइल अँजोर।।
निकलल बा जइसे कहीं, बदरी में से चांद।
पर्दा में राखल करऽ, आपस के मतभेद।
गैर दवा ना, दर्द दी, बहुती होई खेद।।
सरकइतू चिलमन तनिक, हो जाइत दीदार।
एक झलक पावे बदे, व्याकुल नैन हमार।।
पर्दा जनि राखीं कबो, प्रेम हृदय के बीच।
दर्द बहुत देला सखे, वैमनस्य के कीच।।
आँखी पर पर्दा पड़ल, बुद्धि भइल हऽ भ्रष्ट।
भोजपुरी भाषा सखे, हमने कइनी नष्ट।।
अवगुण सब सम्मुख धरीं, गुनवा राखीं तोप।
आपन कमी न देखिहन, हो जइहन ऊ लोप।।
पर्दा कवनी बाति के, हमरा-तहरा बीच।
व्याकुल बा देखे बदे, नैना पापी नीच।।
राति-राति भल जागि के, खूब बहवनी नीर।
दुसरे की साथे गइलि, यार न बुझलसि पीर।।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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