कुछ बारिशें बंजर लेकर आती हैं
कुछ बारिशें बंजर लेकर आती हैं, जब आंखें आंसुओं से लिपट जाती हैं।
भीगते तो हैं सतह मगर, चोटें आत्मा तक पहुँच जाती हैं।
कहते हैं अंधकार मिटाने को वो धूप जगमगाती है,
पर वो धूप हीं तो है, जो परछाईयों को और गहरा कर जाती है।
कभी जो रास्ते तलाशते थे घर की तरफ आने को, अब वही राहें घर से दूर ले जाती हैं।
जिन पगडंडियों पर चलना सीखा, वो पगडंडियां भी अब नजरें चुराती हैं।
वक़्त भी वो वक़्त लिए आ जाती है, कि गहरे रिश्तों को रंगहीन कर जाती है।
इक डोर से बंधे नातो में, अब बस गाठें हीं गाठें नजर आती हैं।
कुछ बातें अहसासों से टकराती हैं, मन में हलचल मचा जाती हैं।
कोशिशें थी भूलने की नई बातों को, पर अब पुरानी बांते रोज हीं सताती हैं।
आवाजें खामोशियों से निकलकर, खामोशी में हीं समा जाती हैं।
और जख्म ऐसे दे जाती है, जो सदियों तक कानों में गुनगुनाती हैं।
जन्म के साथ हीं तो डोर, मृत्यु की ओर खींचनी शुरू हो जाती हैं।
पर जब मृत्यु नाराजगी दिखाती है, तब जीवन का अभिशाप दे कर जाती है।