कुछ पल
कुछ पल अपने नाम कर
एक सुबह सैर के लिए
एक शाम ज़िंदगी के लिए
कुछ पल निकालिए अपने लिए
कुछ पल निकालिए सपनों के लिए
दिन तो हर रोज़ गुजरता है
हर दिन सूरज ढलता – निकलता है
अपने लिए समय, समय पर निकाल लें
यह समय किसी के लिए रुकता नहीं है
कर लो थोड़ी सी बातें ख़ुद से
समझ लो जब कोई न समझे
जब अकेले हो, यही समय है
ख़ुद को बनाने में लगाने का
यदि हम खुश रहेंगे
तभी खुशियां देंगे
यदि हम ही दुःखी होंगे
तो खुशियां कैसे देंगे
जब खुशियां देंगे नहीं
तो खुशियां मिलेंगी नहीं
जो देंगे वहीं तो मिलेगा
रेत में महल बनता नहीं
सपने देखो जितने देख सको
उन सपनों को उड़ान दो
ख़ुद को पहचान कर
उन सपनों को नाम दो
निकालो वक्त अभी से
यह पल फ़िर नहीं आयेंगे
वक्त बदल जाएगा
तुम वहीं के वहीं रह जाओगे
_ सोनम पुनीत दुबे