*कुछ नहीं कहना*
अब मुझे किसी से कुछ नहीं कहना
तन्हाइयों से मुलाक़ात है अब करना
जहां खत्म हो जायें लफ्ज़ औरों के
समंदर बन जाना है दरिया ना बनना
किसी से अब मुझे कुछ नहीं कहना है
अपने आप में मगन अब मुझे रहना है
वक्त का पहिया हर पल घूमता ही रहेगा
इस व्यस्तता भरी जिंदगी में रंग भरना है
वो वक्त के जैसे हैं पल-पल में बदलते हैं
हम गहरे समंदर हैं पल-पल में बढ़ते हैं
एक बात कहूं उनसे मगर मानें ना मेरी
वह हैं मगरूरी में पल-पल में बिगड़ते हैं
छिपाकर रखता हूं मैं अपने ज़ख्म जमाने से
मेरी जां छिपाकर रखती है नमक जमाने से
मुसाफ़िर हूं यारों सुलगते दिलों को जीतना है
वो ख़ुद सुनेंगे मुझे किसी ना किसी फसाने से
© Abhishek Shrivastava “Shivaji”
@Shrivastava_alfazz