******** कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो *********
******** कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो *********
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चल दिये हम दो कदम,कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो,
भूल कर सारे भरम , कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो।
आ गई बरसात भी, प्यासा हृदय जलने लगा,
खिल उठा उजड़ा चमन,कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो।
छोड़ कर शिकवे – गिले, आओ हमारी रहगुजर,
बात पिछली कर ख़त्म,कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो।
बीत जाए ना घड़ी , अब मान आओ हमसफऱ,
बढ़ गई तन-मन तड़फ, कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो।
यार मनसीरत खड़ा , दीदार दो झट दो घड़ी,
हैँ खुली बाँहें सनम ,कुछ दो कदम तुम भी बढ़ो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)