कुछ दोहे …
ताज स्वार्थी शीश पर, बने हुए सम विष्णु.
देखो कहते फिर रहे, भारत है असहिष्णु..
परिवारीजन हैं दुखी, कैसे हो अब काम.
अफसर चाहे अप्सरा, और साथ में दाम..
औरत को ही देखकर, है समाप्त अध्याय.
पुरुषवर्ग की भी सुनें, तभी हो सके न्याय..
पक्षपात की धुंध से, धूमिल है आदित्य.
न्याय-व्यवस्था से दुखी, आज विक्रमादित्य..
कितनी आज कुरीतियाँ, कैसे करें सुधार?
बाधक मित्र विपक्ष है, होता अत्याचार..
इन्जी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’