कुछ दोहे
गांव दुखी , जंगल दुखी , दुखी खेत खलिहान।
दुखी आत्मा देश की , कैसे हो कल्याण।। 01
महंगाई की मार से , बेड़ा होता गर्क ।
अंधे बहरे तंत्र को , पड़े न बिल्कुल फर्क ।।02
जनता के प्रति धर्म क्या , गया तंत्र यह भूल ।
अपनी अपनी बात में , दिखते सब मशगूल ।।03
खादी पर नित दिख रहे , तरह तरह के दाग ।
लेकिन जनता के लिए , अच्छे दिन के राग ।।04
बड़े घिनोने कर्म कर , किया प्रकृति को नष्ट ।
धोता हाथ शराब से , क्या कम है यह कष्ट ।।05
सतीश पाण्डे