कुछ दोहे
दोहा लिखा न जा रहा, करें छंद निर्माण।
मुखपोथी पर देखिए, मिलता खूब प्रमाण।।
जिनको समझ न आ रहा, दोहा छंद विधान।
निर्माता हैं छंद के, ऐसे लोग महान।।
समझ नहीं आता जिन्हें, छंदों के सुर-ताल।
छंद बनाते फिर रहे, भाई मनसुख लाल।।
सत्य कभी मत बोलिए, होती है तकरार।
उलझन मिलती व्यर्थ में,दुश्मन बनें हजार।।
वाह-वाह करते रहो, बने रहोगे मीत।
सत्य बात पर साथियों, टूटा मधुरिम प्रीत।।
चलना तो आता नहीं, बना रहे हैं राह।
कुछ चमचों को जोड़ कर, करा रहे हैं वाह।।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य