कुछ दर्द झलकते आँखों में,
कुछ दर्द झलकते आँखों में,
कुछ तीर-ए-जफा गहरे हैं हिय।
न जाने किसको ढूँढ रही,
लब की झूठी मुस्कान प्रिय।
नीलम शर्मा ✍️
कुछ दर्द झलकते आँखों में,
कुछ तीर-ए-जफा गहरे हैं हिय।
न जाने किसको ढूँढ रही,
लब की झूठी मुस्कान प्रिय।
नीलम शर्मा ✍️