कुछ तो कर गुजरने का…..
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कुछ तो कर गुजरने का
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कुछ तो कर गुजरने का
हवा पैगाम लाया है ।
सच की हर हया की
अम्न का तहजीब लाया है ।।
है छा रहा बादल हरे
आकाश को ढकने लगा ।
हैवानियत भी बन कहर
अब बून्द सी बनने लगी ।।
अब तो आशियाँ में एक
दिशा वाजिब लाया है ।
कुछ तो कर गुजरने का……………..
एक को हक़ और दूजे
को नहीं मिलता ।
क्यों नहीं जो एक को
सबको वही मिलता ।।
अब तो धूर्त के गर्दन का
एक परिमाप लाया है ।
कुछ तो कर गुजरने का………………
रौशनी जबतक नहीं
होता तभी तक है तिमिर ।
मौन जबतक “सामरिक” है
ये व्यवस्था है बधिर ।।
अब तो हर तिमिर का
तोड़ सत का दीप आया है ।
कुछ तो कर गुजरने का…………….
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सामरिक अरुण
3 जून 2016