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9 May 2018 · 1 min read

“कुछ काव्याभिव्यक्ति पर”

काव्य स्वाभाविक लयात्मक अभिव्यक्ति है, इसलिए उसकी स्वयं की अपनी मर्यादा होती है। स्वाभाविक लयात्मक और खुद-बखुद छन्दबद्ध कविताओं में एक दर्शन होता है। इन्हें पढ़कर पाठक और सुनकर श्रोता आनंदित होता है। आकुल हृदय हो या अति प्रसन्न हृदय हो, कविता फूट पड़ती है तब उसे प्रतिभा कहते हैं, क्योंकि हठ करके ऐसी रचनाऐं नहीं रची जा सकती हैं। नई कविताई और तथाकथित नवगीत तो कई लिख सकते हैं। इन्हें बेशक रचनाऐं कहा जा सकता है, लेकिन कविता नहीं। स्वयं में स्वाभाविक लयात्मकता का अभाव पाकर नई कविताकार काव्यप्रतिभाओं का उपहास करते हैं। लयात्मक कविताऐं बेहद उच्च स्तरीय होने के बावजूद भी साहित्यिक पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित होने को तरसती हैं। खैर, कविता का विषयवस्तु स्वयं चयनित हो जाता है : जैसे – श्वानों को मिलता दूध, बिलख भूखे बच्चे अकुलाते हैं (दिनकर ), हरिजन गाथा(नागार्जुन ), खेती न किसान को, भिखारी को न भीख बलि, बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।(तुलसीदास ) इत्यादि।

साहित्य में कितना वाद चले लेकिन साहित्य कभी किसान थोड़ा ही पढ़ता है, गुनगुनाने के बहाने जरूर कुछ याद रखता है।
(निबंध- “आयी फिर कविता की याद” से साभार)
@अशोक सिंह सत्यवीर

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 527 Views
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