कुछ कह रहा
।। कुछ कह रहा था वो ।।।
ध्यान से सुना जब उसको, तो कुछ कह रहा था वो,
याद करके अपनी वफ़ा को, शायद रो रहा था वो,
लगा यूँ कि वो कहता रहा अपने दिल के हर ज़ज़्बात को,
मैं तो जागता रहा उसकी दास्तां में, पर सो रहा था वो ।।
कुछ कह रहा था वो…………
उसने कहा हम बचपन से साथ थे, पर खो रहा था वो,
जो कुछ भी नहीं काट पाया था खुद, वही बो रहा था वो,
शायद अँधेरे ही हमारी किस्मत का उजाला थे हमेशा से,
जिन उजालों ने दी थी कालिख, उन्हीं उजालों को धो रहा था वो ।।
कुछ कह रहा था वो…………
उसका कुछ कहना और फिर रुक जाना, डर रहा था वो,
जो किया था खाली उसने मेरे दिल से, वही भर रहा था वो,
देखना, चाहना, मिलना, निभाना, या खो देना ये सब तो था मगर,
कहने को ही वो ज़िन्दा था सिर्फ़, पर मर रहा था वो ।।
कुछ कह रहा था वो…………
वैसे करता तो कुछ नहीं बस, यूँ ही लगा रहता था वो,
शायद एक दरवाजा था मोहब्बत का, खुला रहता था वो,
यूँ तो सब कुछ सूना – सूना ही होता था उसके बिन मग़र,
सामने हो निग़ाहों के वो हमेशा, फिर भरा रहता था वो ।।
कुछ कह रहा था वो…………