कुछ कटाक्ष वीर रस के कवियों के लिए
ताटंक छन्द
हम भी गीत सुना सकते हैं, वीरों की परिपाटी का।
और सुना सकता हूँ किस्सा, उस कश्मीरी घाटी का।
किन्तु राम ने राज किया था, प्रेमभाव से भारत में,
मैं भी प्रीत जगाता जगमें ,बना हुआ जो माटी का।
जैसे तलवारों में होना, पैनी धार जरूरी है।
कर्तव्यों के साथ-साथ में ,शिष्टाचार जरूरी है।
जहाँ वीररस के कानों में ,गीत सुनाई देते हों,
बहुत नही तो चार पंक्तियों का, श्रंगार जरूरी है।
अदम्य