कुंदलता सवैया
कुंतलता सवैया
मापनी- सगण×8+2 लघु
(1)
अभिलाष यही उर भाव भरो हर गीत बनें नित मातु सुहावन।
छल दंभ मिटे अभिमान घटे करुणा भर दो कर दो मन पावन।
मम चाह नहीं धन वैभव की बस मातु सँहार करो मन रावन।
वर माँग रहा हर छंद बने अब कालजयी सँग लोक लुभावन।।
(2)
मनुहार नहीं अब प्रीत नहीं इक रीति नई अब आवत है नित।
वसुधा सिगरी बस त्रस्त दिखे सजनी बिन ही बहलावत है चित।
अनुमान नहीं दुख का लगता सजना विरही बन गावत है कित।
परवाह कहाँ सजना सजनी अब देख रहे सबही अपना हित।।
(3)
दुख भंजक नंदन मारुति के विनती सुन एक सुधार करो प्रभु।
अति पीडि़त शापित दीन दुखी उनको भवसागर पार करो प्रभु।
नित आर्त्त पुकार सुनो सबकी इक बार नहीं हर बार करो प्रभु।
तव दर्शन अंतिम लक्ष्य बना अब दर्शन दो उपकार करो प्रभु।।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय