कुंडलिया
कुंडलिया
बाबा इस संसार की,अजब-गजब सी रीत।
कद्रदान से रूठते, बेक़दरों से प्रीत।।
बेक़दरों से प्रीत, सलाह तात की चुभती।
गैर हुए हमदर्द, राय उन्हीं की लुभती।।
मात-पिता से बैर, घूमते काशी-काबा।
देख बदलती रीत, जगत से रूठे बाबा।।
©दुष्यंत ‘बाबा’