कुंडलिया
कुंडलिया
हेमंत ऋतु
1
आया रितु हेमंत लघु , हुआ दिवस का रूप
और कुहासा छा गया, मिले न रवि की धूप
मिले न रवि की धूप, काँपने लगे सभी अब
डरकर तन में आठ वस्त्र हैं पहन रखे सब
काँप रहे सब जीव, जिया सबका अकुलाया
बजे खटाखट दाँत, समय जाड़े का आया
2
जैसे ही कार्तिक गया, हुआ शरद का अंत
अगहन में कुहरा लिए ,आया रितु हेमंत
आया रितु हेमंत ,हो गया छोटा दिन अब
छोटे पर भी सूर्य महोदय ही दिखते कब
रोक दिया है सूर्य किरण को कुहरा कैसे
लघु पर्दे की ओट, न दिखता पर्वत जैसे
3
होता अगहन, पूस का , गजब भयावह रूप
जिससे डरते सूर्य भी, नहीं निकलती धूप
नहीं निकलती धूप,कदाचित आ भी जाती
लगता रवि ने उन्हें ,बाँध भेजी हो गाँती
दिख भी जाता सूर्य, तो दिखे रोता-रोता
दम हेमंत में सोच लीजिए इतना होता
अवध किशोर ‘अवधू’
मोबाइल नंबर 9918854285
दिनांक-23-11-2024