कुंडलिया
“कुंडलिया”
ढोंगी करता ढोंग है, नाच जमूरे नाच
बांदरिया तेरी हुई, साँच न आए आंच
साँच न आए आंच, मुर्ख की चाह बावरी
हो जाते गुमराह, काटते शीश मदारी
कह गौतम चितलाय, पाक है पंडित पोंगी
अस्त्र शस्त्र पकड़ाय, आतंक परोषे ढोंगी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी