कुंडलिया
कुंडलिया
भाई सरहद पर डटे, बहना हुई उदास।
अबकी राखी में नहीं, आने की है आस।
आने की है आस, माह अगले में कहते।
कितनी मन में पीर, बहन भाई ये सहते।
पर्वत नदिया और, संभालें जंगल खाई।
मां के सच्चे पूत, हमारे ये ही भाई।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली