कुंडलिया
कुंडलिया
काया की माया मिटी, मिटे देह अनुबंध ।
सूक्ष्म अकेला ही चला ,छोड़ धरा की गंध ।
तोड़ धरा सम्बंध , छोड़ यादों की पाती ।
हर साथी को याद , सदा ही उसकी आती ।
कह ‘सरना’ यह बात, अजब उस रब की माया ।
हुई मृदा में लीन, अंत में नश्वर काया ।
सुशील सरना / 22-7-24