कुंडलिया
कुंडलिया
गोरी बारिश में चली, भीगे सब परिधान ।
गौर वर्ण लगने लगा, गजलों का दीवान ।
गजलों का दीवान , करें क्या नैन दिवाने ।
भेदें भीगा चीर , नजर के यह मस्ताने ।
कह ‘ सरना ‘ कविराय, हुई यह नजर चटोरी।
देखे भीगा रूप , बचेगी कब तक गोरी ।
सुशील सरना / 18-7-24