कुंडलिया
कुंडलिया
नैनों से चोटिल चले, मधुशाला के द्वार ।
खोलेंगे हर घूँट में, ये मन के उद्गार ।
ये मन के उद्गार , कहानी वही पुरानी।
अंतस का विश्वास , छल गई दिल की रानी ।
देती दिल को चोट , अदा में गुम डेनों से ।
लेने आई होश , आज फिर दो नैनों से ।
सुशील सरना / 14-7-24