कुंडलिया
कुंडलिया
छोटी-छोटी बात पर, मत कर मन प्रतिकार।
साल भरे में घूर की, आती रही बहार।।
आती रही बहार, रहे दिन सबके फिरते। ।
करते जो प्रतिकार, नज़र से खुद ही गिरते।।
कह बाबा कविराय, दीन की कर मत खोटी।
रहे नही दिन-रात, बात रह जाती छोटी।।
©दुष्यंत ‘बाबा’