कुंडलिया
कुंडलिया
देख चिता शमशान में, कहने लगा मलंग ।
लड़ते – लड़ते जिंदगी, आखिर हारी जंग ।
आखिर हारी जंग , समझ में जरा न आया ।
देह श्वास के तार , चलाती कैसे माया ।
कह ‘सरना’ कविराय,अजब है भाग्य के लेख।
डर जाता क्यों जीव , चिता को जलता देख ।
सुशील सरना /