कुंडलिया
हुक्मरान ही जब करें , चोरी में सहयोग।
पाण्डेय फिर उस तंत्र को ,कैसे लिखे निरोग।।
कैसे लिखे निरोग , चौकसी पर सवाल हैं ।
उद्धारक का स्वांग , नित्य होते बवाल हैं।
अभिव्यक्ति पर बैन, मौन है खुद जुबान ही ।
लानत लिखूं विकास, चोर जब हुक्मरान ही।।