कुंडलिया
निर्झर-सा गतिमान ही, होता उत्तम छन्द।
पाठक गण के चित्त में,भर देता आनंद ।
भर देता आनंद ,सृजन में हो उत्तमता।
छटता है तिमिरांध,उमड़ती है चेतनता ।
नव- रस की रसधार ,हृदय को जाती धोकर।
झरता झर-झर सतत,जभी साहित्यिक-निर्झर।
(मौलिक व स्वरचित)
©सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’