कुण्डलिया: मान की कुर्सी
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कुर्सी सबको सम्मान दे, कर दे ऊंची आन।
जो बैठे इसको पाकर , सदा बढ़ाये मान।।
सदा बढ़ाये मान, प्रतिष्ठा जग में लावे,
दुश्मन आके बैठे , तब बैर कम हो जावे।
सुनहुँ सलाह अशोक, जब कर्म ऊँच हो जाई,
जे भी इन्सान बनी, ऊ जग में कुर्सी पाई।।
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●◆★अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र.★◆●
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