कुंडलिया :– निन्दा रस (व्यंग)
कुंडलिया :– निन्दा रस
निन्दा रस में सनी हुई बस औरत की जात !
उल्टा-सूल्टा कर रही वो हर सीधी बात !
वो हर सीधी बात कहे मुँह तिरछा कर के !
हुआ हाजमा ठीक हँसे जब जी-जी भर के !
कहे “अनुज” दो घूंट बिना ये जीवन नीरस !
जिन्दा है वो आज बना जब से निन्दा रस !!
कवि :– अनुज तिवारी “इन्दवार”