कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद-
लगते हैं अब तक हरे, जाति- धर्म के घाव।
नमक छिड़कने आ गए,फिर से आम चुनाव।
फिर से आम चुनाव , करेंगे पैदा दूरी।
होंगे खूब फसाद , चलेंगी चाकू छूरी।
फैलाकर उन्माद , सभी जनता को ठगते।
अब तो सभी चुनाव ,हमें दुश्मन- से लगते।।1
कर देता जो देश हित,प्राणों का बलिदान।
माना जाता है वही, जग में पुत्र महान।
जग में पुत्र महान,गर्व अनुभूति कराता।
हो जाते हैं धन्य , उसे पा बापू माता।
भारत माँ के कष्ट,शीश सब खुद ले लेता।
देश- प्रेम में प्राण ,होम अपने कर देता।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय