कुंडलिया छंद
कैसे अपने देश के, बदलेंगे हालात।
बस बातों में जिक्र ये,चिंता की है बात।।
चिंता की है बात,सुशिक्षित तलें पकौड़ी।
महंगाई का अंत,दूर की लगती कौड़ी।
हारा करके यत्न ,जेब में टिकें न पैसे।
मन में उठे सवाल ,सुदिन ये आए कैसे?
डाॅ बिपिन पाण्डेय