कुंडलिया छंद
सर्दी ने इस बार तो,धरा रूप विकराल।
कहते हैं ये बात सब ,जाड़े में हर साल।
जाड़े में हर साल,बात दे यही सुनाई।
पहनो कपड़े गर्म ,ओढ़कर रहो रजाई।
करे न उम्र लिहाज,बनी फिरती बेदर्दी।
जीना करे मुहाल, गरीबों का ये सर्दी।।1
सर्दी में सूरज हुआ ,घर के अंदर कैद।
खाँसी उसको आ रही,खोज रहा है वैद।
खोज रहा है वैद, घूमता मफलर बाँधे।
पहने स्वेटर, कोट,शाॅल लटकाए काँधे।
घेरे रहती धुंध , हुआ मौसम बेदर्दी।
पीता काॅफी ,चाय,न छोड़े पीछा सर्दी।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय