कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद-
माना ये इस जगत में,फल हैं खास तमाम।
कहते हैं पर सब यही,फल का राजा आम।
फल का राजा आम,सभी को सदा लुभाए।
बालक वृद्ध जवान ,इसे हर कोई खाए।
सबका अपना स्वाद,भेद हैं इसके नाना।
जो है जिसे पसंद, उसी को बढ़िया माना।।1
मँहगाई के दौर में, आम हो गया खास।
निर्धन मुँह लगता नहीं,जिसकी जेब उदास।
जिसकी जेब उदास,देखकर वह ललचाए।
बढ़िया सुन्दर आम ,खास जन बैठा खाए।
रहे नहीं अब बाग ,सभी की हुई कटाई।
घटी आम आपूर्ति , बढ़ी दूजे मँहगाई।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय