कुंडलिया छंद
कविताई को छोड़कर ,करो नेक कुछ काम।
देते यही सलाह नित ,मुझको लोग तमाम।
मुझको लोग तमाम , यही रहते समझाते।
रँग कर कागज़ व्यर्थ,बैठ क्यों समय बिताते।
ताने मारे रोज़ , कहे यह बात लुगाई।
दो बच्चों पर ध्यान ,बहुत कर ली कविताई।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय