कुंडलिया छंद
सुगढ़ तराशा बदन है,आनन शोभित इंदु।
तुहिन कणों से राजते ,माथे पर श्रम बिंदु।
माथे पर श्रम बिंदु ,गुंथे आटे- सी काया।
अति अगाध सौंदर्य,जगाए मन में माया।
यौवन का है ज्वार,तरंगित करता आशा।
मेटे मन का धीर,बदन यदि सुगढ़ तराशा।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय