कुंडलिया छंद
लिए पिटारा ज्ञान का ,बाँट रहे जो लोग।
उन्हें नहीं यह ज्ञात है,आत्ममुग्धता रोग।।
आत्ममुग्धता रोग,लगा है जिसको प्यारे।
उसके आगे देव, बृहस्पति भी हैं हारे।
गढ़ता बैठ कुतर्क ,मूर्ख का यही सहारा।
ठाने पल में रार ,ज्ञान का लिए पिटारा।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय