कुंडलिया छंद
कुंडलिया छंद-
रावी तट पर बैठ जब,लिया एक प्रण खास।
षट्विंशति तारीख थी, और जनवरी मास।
और जनवरी मास,सभा थी एक बुलाई।
लेंगे पूर्ण स्वराज्य ,कसम सबने थी खाई।
होगा देश स्वतंत्र , योजना थी ये भावी।
जिसका बना गवाह, नदी तट सुन्दर रावी।।1
मिलता है सरकार को ,जब जनता का साथ।
विकसित होता देश तब ,चले उठाकर माथ।
चले उठाकर माथ, कर्म पर जो विश्वासी।
उनकी है तादाद, जगत में अच्छी खासी।
हर विकास का पुष्प,तभी है केवल खिलता।
जब सबका सहयोग ,देश को हरदम मिलता।।2
डाॅ बिपिन पाण्डेय