कुंडलिया छंद
होता है जब नित्यप्रति ,अपनों से संपर्क।
तभी चढ़े आकाश में ,संबंधों का अर्क।
संबंधों का अर्क , सदा खुशहाली लाए।
पर अपनों का मौन,कष्ट को नित्य बढ़ाए।
सुन गैरों का शोर ,बैठ मन रहता रोता।
जब हों अपने दूर ,कष्ट तब भारी होता।।1
तन का धोना व्यर्थ है ,दूर करो मन मैल।
परिवर्तन होगा तभी ,टूटे दुख की शैल।
टूटे दुख की शैल ,बहे खुशियों का निर्झर।
आते हैं प्रभु पास ,ज़िंदगी जिन पर निर्भर।
समझ न पाते सत्य,यही रोना सब जन का।
करते हैं पाखंड ,मिटाते मैल न मन का।। 2
डाॅ बिपिन पाण्डेय