कुंडलिया छंद
होता हूं ये सोचकर,कभी कभी मैं दंग ।
लाया था क्या साथ मैं,जाएगा जो संग ।
जायेगा जो संग, बता क्या पगले मुझको ।
बैठे है जो आज, स्वार्थ वश घेरे तुझको ।
ले ईश्वर का नाम,लगा ले उसमे गोता।
परेशान हर रोज,व्यर्थ में ही तू होता ।।
रमेश शर्मा.