कुंडलिया छंद
नेता सत्ता के लिए , रचता रोज प्रपंच।
उसको अपने काम पर ,लाज न आए रंच।
लाज न आए रंच, तानकर सीना चलता।
करे स्वार्थ की पूर्ति,सभी को रहता छलता।
हाँके डींगें खूब, नहीं कुछ करके देता।
गिरवी धरे जमीर , और कहलाए नेता।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय